मंगलवार, 11 अगस्त 2009

मिठास स्वाधीनता की (संस्मरण)

"पंद्रह अगस्त को हम स्वाधीनता दिवस के रूप में तो मनाते ही हैं लेकिन ये एक ऐसा मौका भी होता है जब कुछ पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। मसलन स्कूल से जुड़ी हुईं कुछ यादें पंद्रह अगस्त के मौके पर जरूर बचपन के दिनों की याद दिलाती हैं।आज जब भी पंद्रह अगस्त आता है तो वो पल जरूर याद आते हैं जब बचपन में स्कूल में स्वाधीनता दिवस मनाने का अलग ही क्रेज था। एक दिन पहले ही पंद्रह अगस्त के लिए स्कूल की ड्रेस की धुलाई हो जाती थी और बढ़िया प्रेस करके चमचमाती हुई ड्रेस पहनकर जाते थे। स्कूल में एक दिन पहले ही बता दिया जाता था कि सभी लोगों को स्वाधीनता दिवस के अवसर पर भाषण और देशभक्ति के गीत तैयार करके आना है॥और सभी के लिए ये अनिवार्य होता था।मुझे आज भी याद है जब मैं कक्षा तीन में पढ़ता था शायद 15 अगस्त 1993 की बात है॥मैं सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ता था॥मुझसे मेरे आचार्य जी ने एक दिन पहले ही बोल दिया कि नितिन कल तुमको कोई देशभक्ति गीत ध्वजारोहण के बाद सुनाऔर तुम्हारा नाम रजिस्टर में लिख लिया गया है...घर आकर अपनी परेशानी पापा जी को बताई तो उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा इसमें घबराने की क्या बात है..अभी हाल एक कविता लिखकर तुमको देता हूं इसको याद कर लो..और कल सुना देना..(पापा जी ने बताया कि ये कविता वो भी जब स्कूल में पढ़ते थे तो सुनाते थे)..मैंने वो कविता याद कर ली और अगले दिन स्कूल में सुनाई...बचपन में सुनाई उस कविता की आज भी चार पंक्तियां याद हैं और पंद्रह अगस्त आते ही कविता और उस पंद्रह अगस्त की जरूर याद आती है क्योंकि मंच पर वो मेरी प्रथम प्रस्तुति थी और उसी ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया था..और मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगा..वो कविता अपने ब्लाग के पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहा हूं...
भारत वर्ष हमारा प्यारा सब देशों से न्यारा है
हम हैं इसके फूल और ये सुंदर बाग हमारा है
यहां राम की मर्यादा है,यहां कृष्ण की गीता॥
अग्नि परीक्षा देने वाली यहां हुई मां सीता ।
चन्द्रगुप्त की विजय यहीं हुई यहीं सिकंदर हारा
भारत वर्ष हमारा चमके बन ध्रुव तारा
हम है इसके फूल और ये सुंदर बाग हमारा है
...आखिर में एक और चीज जिसको काफी मिस करता हूं शायद मैं ही क्या सभी को याद आती होगी उसकी....और वो है पंद्रह अगस्त के दिन स्कूल में बंटने वाले लड्डू...अलग ही मिठास होती है पंद्रह अगस्त के दिन बंटने वाली मिठाई की...मिठास स्वाधीनता की...मिठास देशभक्ति की...

मंगलवार, 30 जून 2009

आज पहली तारीख है..

जिन लोगों की पहली तारीख को तन्ख्वाह मिलती है उनके लिए पहली तारीख किसी जन्मदिन के दिन जैसी खुशी लेकर आता है... पहली तारीख कि उल्टी गिनती बीस तारीख से ही शुरू हो जाती है और पच्चीस तारीख आते आते नौकरीपेशा ये सोच कर तसल्ली करते हैं कि बस पांच दिन ही तो बचे हैं...और यदि पहली तारीख को छुट्टी या फिर संडे पड़ जाए तो फिर समझिए कि काटो तो खून नहीं...(हालांकि मुझे तो पांच तारीख का बेसब्री से इंतजार रहता क्योंकि हमारी तन्ख्वाह तो पांच तारीख को ही मिलती है)
आज सवेरे नाश्ता करते वक्त टीवी देख रहा था तभी टीवी पर एक ऐड आया कि खुश है जमाना आज पहली तारीख है...ऐड केडबरी डेयरी मिल्क चाकलेट का है जिसमें गाने के साथ एक मध्यम वर्गीय युवक जिसकी पहली तारीख को पगार मिलती है बहुत खुश होकर गाना गाता है...वीबी को आज सिनेमा दिखाना आज पहली तारीख है...
सच में तन्ख्वाह मिलने का इंतजार किस कदर होता है और खास तौर पे मध्यम वर्ग के लिए तो पूछिए ही मत...घर का पूरा बजट पहली तारीख पर ही निर्भर करता है। बच्चे की फीस भरनी हो या फिर घर का राशन लाना हो या फिर बीवी की फर्माईस पुरी करनी हो सब कुछ पहली तारीख के बाद ही हो पाता है। पहली तारीख को तो कमाऊ आदमी का जोश इस कदर होता है कि पूछिये ही मत। घर आने से पहले रास्ते में मिठाई की दुकान से बच्चों के लिए मिठाई लाना नहीं भूलेगा। ऑफिस से ही फोन पर बीवी से बात तय हो जाती है कि आज होटल में खाना खाया जाएगा या फिर बढ़िया मलाई पनीर बनेगा और मस्त खीर बना ली जाए। बीवी की फर्माइश सिनेमा देखने की भी हो तो पांच बजे ऑफिस से लौटते वक्त पति महोदय को टिकट भी लेकर आना पड़ता है...
घर आने के बाद बच्चे की जिद भी पूरी करनी हैं...काफी दिनों से बच्चा साइकिल की जिद कर रहा था तो इस बार साइकिल भी खरीद कर देनी है...यदि किराए के मकान में रहते हैं तो मकान मालिक को किराया भी देना है। कुल मिलाकर पहली तारीख को ही इतने खर्चे हो जाते हैं कि बेचारा मध्यमवर्गीय इंसान अगली पहली तारीख का इंतजार अगले दिन से ही करना शुरु कर देता है। मतलब की पहली तारीख को खुश है जमाना कि पहली तारीख है...मगर पहली तारीख की खुशी पगार पाने वाले को तो सिर्फ पहली तारीख तक ही रहती है...अगले दिन से फिर पहली तारीख का इंतजार...

तो आगे की पंक्तियां गुनगुनाएं और पहली तारीख का इंतजार करें...

दिन है सुहाना आज पहली तारीख है - 2
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख है
बीवी बोली घर ज़रा जल्दी से आना,
जल्दी से आनाशाम को पियाजी हमें सिनेमा दिखाना, हमें सिनेमा दिखाना
करो ना बहाना हाँ बहाना बहानाकरो ना बहाना आज पहली तारीख हैखुश है ज़माना आज पहली तारीख है
मिलजुल के बच्चों ने बापू को घेरा,
बापू को घेराकहते हैं सारे की बापू है मेरा, बापू है मेराखिलौने ज़रा लाना,
खिलौने ज़ला लाना आज पहली तारीख हैखुश है ज़माना ... आज पहली तारीख है...

रविवार, 21 जून 2009

एलिजिबल फॉर फ्री ट्रेवल

आज मैं किसी काम से बाजार गया हुआ था॥लौटते वक्त टैक्सी पकड़ी उसमें मेरे सामने एक लड़का बैठा हुआ था । वह शायद कोई एक्जाम देकर लौट रहा था । क्योंकि उसकी शर्ट की जेब में कॉल लेटर रखा हुआ था उसने कॉल लेटर हाथ में निकाला और कुछ पढ़ने लगा । मेरी उत्सुकता थी कि देखूं किस एक्जाम को देकर वह लौट रहा है...उसका कॉल लेटर देखा तो पता चला कि वह रेलवे भर्ती बोर्ड भोपाल की टीसी की परीक्षा देकर लौट रहा है॥अचानक उसके कॉल लेटर के नीचे नजर गई तो देखा उसमें लिखा हुआ है कि एलिजिबल फॉर फ्री ट्रेवल....उससे चर्चा हुई तो पता चला कि उसके पिता जी सरकारी नौकरी में हैं और अच्छी खासी खेती भी है...पूछने पर उसने बताया कि रिजर्व क्लास के उम्मीदवारों को रेलवे फ्री में एक्जाम के लिए पास जारी करता है...टैक्सी में बैठे हुए अचानक एक दिन पहले की स्मृति में खो गया॥मेरे दोस्त (नाम प्रकाशित नहीं कर सकता) का फोन आया था...काफी दिन बाद फोन किया था उसने ...अधिकांश बार मैं ही उसे फोन कर लेता हूं क्योंकि उसकी माली हालत ठीक नहीं है...हालचाल पूछे उससे...कंपटीशन एक्जाम की तैयारी कर रहा है वह...पूछा कि आजकल कोई एक्जाम नहीं दे रहे हो... उसने बताया कि भोपाल बोर्ड का फार्म भरा था टीसी के पद के लिए...लेकिन एक्जाम नहीं देने जा रहा हूं...और कल ही एक्जाम है॥सेंटर इंदौर में है...पूछा कि क्यों एक्जाम नहीं दे रहे हो तो बताया कि ट्यूशन की फीस नहीं मिली है( वह अपना खर्चा ट्यूशन पढ़ाकर ही निकालता है) और किराए के लिए पैसे नहीं हैं...यह सब सोच ही रहा था कि अचानक मेरा स्टापेज आ गया और टैक्सी रुक गई...टैक्सी से उतरकर पैसे दिए टैक्सी वाले को और अपने रूम की तरफ बढ़ते हुए सोचने लगा कि काश मेरा दोस्त भी एक्जाम में शामिल हो पाता यदि छूट का दायरा आर्थिक आधार होता....फिर उसके कॉल लेटर में नहीं लिखा होता कि नॉट एलिजबल फॉर फ्री ट्रेवल..

गुरुवार, 18 जून 2009

प्रथम प्रयास

आज पहली बार सफलता पूर्वक अपना ब्लॉग बना ही लिया। काफी दिनों से कोशिश कर रहा था पर बन ही नहीं रहा था॥पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा था हालांकि ये भी हो सकता है कि मैं कोशिश ही नहीं कर रहा था।
खैर देर से आए पर आए तो सही।
नाम भी ब्लॉग का बड़ी जिम्मेदारी वाला है क्योंकि ब्लॉग का नाम दिया है नितिन दिल से यानि मेरे दिल की बात। अब देखना है ब्लॉगिंग का जो शौक चढ़ा वो कितने दिन तक टिका रहता है और कितनी जिम्मेदारी से ब्लॉग के नाम के साथ न्याय कर पाता हूं.